खामोशियों ने रास्ते से मुस्कुरा कर बोला,कोई था जो कुदरत से लड़ने चला था,कायनात में सबसे बड़ा बनने चला था,कुदरत की एक अंगड़ाई ने उसे घुटनो पर ला दिया है,उसे खुद अपने घर में कैदी बना दिया है नदियों से पानी निचोड़कर,धरती को
होमवर्क से शिकायत थी कभी, कुछ पन्नो को स्याही से भरने में बड़ा ज़ोर आता था,घडी की सुइयां मुर्दा हो जाती थी और मन उड़ता हुआ चरों और जाता था.टीवी के कार्टून और मूवी के किरदार पन्नो में नाचते थे,स्कूल से छूट
एक बड़ी गाड़ी एक घर, बैंक में बैलेंस और फॉरेन का सफर,मसरूफ ज़िंदगियाँ जीए बिना गुजर जाती हैं,एक टीस बनके यादों में सिमट जाती हैं,मैं भी इसी सफ़र का एक मुसाफिर होता,बड़ी दीवाली के इंतज़ार में दीयों को संजोता,तूने छुआ, तो मैं
तेरी नज़र से ज़्यादा मेरी ख्वाहिशों की कदर हो,ऐ दुनिया इसमें गुनाह क्या है?मेरी उड़ानों को तू बताये इसका फलसफा क्या है,मेरे इरादों को तू नापे ये माजरा क्या है? चंद लम्हे ही तो हैं सारी जायदाद मेरी जिसमे बुननी है मुझे सारी कायनात मेरी,इसमें भी
शाखों पे परों को मोड़ के बैठा है वोह पागल ,फलक को नापने की हसरतें दिल में छुपा कर के,वोह कोरी सी दो आंखें ताकती हैं अनगिनत तारे,संभल कर पैर रखता है उड़ानों को भुला कर के,हवाओं ने उड़ाया शाख से जो
आज़ादी की कीमत दायरों में होती है,बिना दायरों के आज़ादी बस एक शोर होती है.हर शख्स आज़ादी में अधिकार माँगता है,पर मुक्कमल आज़ादी तो ज़िम्मेदारियों में छुपी होती है. दायरों में रफ़्तार हो, मुल्क के लिए प्यार हो,अपने हिस्से की सफाई हो,