तेरी नज़र से ज़्यादा मेरी ख्वाहिशों की कदर हो, ऐ दुनिया इसमें गुनाह क्या है? मेरी उड़ानों को तू बताये इसका फलसफा क्या है, मेरे इरादों को तू नापे ये माजरा क्या है?
चंद लम्हे ही तो हैं सारी जायदाद मेरी जिसमे बुननी है मुझे सारी कायनात मेरी, इसमें भी बंदिशों से मेरी मर्ज़ी को मोहताज करदे तू, ऐ दुनिया आखिर ये तेरा कायदा क्या है?
तेरी नज़रों की बेड़ियों ने दिल को इस कदर जकड़ के रखा है दिल के अलफ़ाज़ जुबां पर ही पिघल जाते हैं, मैं अपनी आरज़ू बयां करना चाहता हूँ पर लफ्ज़ भी तेरे मुताबिक़ बाहर आते हैं. मंज़िलें जो चाही थीं, तूने सब चुरा लीं मुझसे, जिन मंज़िलों को हासिल किया उनका फायदा क्या है?
अगर मेरे आसमानों से ज़्यादा तुझे तेरे पिंजरों की कीमत है, परों को समेट के रखूँ तेरी यही नसीहत है, और अगर गुलामी से इतनी ही बेइन्तेहाँ मोहब्बत है तुझे, तो तेरी इस मोहब्बत से मेरी भी बगावत की नीयत है. अगर इस अंधी दौड़ में गुज़र गयी तो ज़िन्दगी से बड़ी खता क्या है?
तेरी नज़र से ज़्यादा मेरी ख्वाहिशों की कदर हो, ऐ दुनिया इसमें गुनाह क्या है?