खामोशियों ने रास्ते से मुस्कुरा कर बोला, कोई था जो कुदरत से लड़ने चला था, कायनात में सबसे बड़ा बनने चला था, कुदरत की एक अंगड़ाई ने उसे घुटनो पर ला दिया है, उसे खुद अपने घर में कैदी बना दिया है
नदियों से पानी निचोड़कर, धरती को तड़पता छोड़कर, हवाओं में धुंआ मिलाता था, जिसे चाहे मारे, जिसे चाहे खाता था, ज़िद पर अड़ा, कुदरत से दूर खड़ा रहता था, हर किसी को छोटा समझता था, अपनी ताकत पर उसे गुरूर बड़ा रहता था.
रास्ता ख़ामोशी से बोला, उसके हर कदम का एहसास है मुझे, जब घुटनो के बल चलता था वह भी याद है मुझे, खड़ा होकर फिर वह तेज़ी से भागने लगा, उड़ने की ख्वाहिश में लम्बी छलांग मारने लगा. उसे लगता है मेरे आखिर में कोई मंज़िल खड़ी है, ज़िन्दगी भर बस एक साये को पाने की हड़बड़ी है. इस सिलसिले को जानकर भी वह न जाने क्यों बेखबर है, ये ज़िन्दगी का हाथ छोड़कर मौत की उंगली पकड़ने भर का सफर है, एक विषाणु के चलते अब वह मौत को महसूस करने लगा है, सारी कुदरत को डराने वाला, आज एक दूसरे से डरने लगा है.
रास्ता और खामोशी चुपचाप सारी दुनिया देख रहे थे, धरती, जंगल, नदी, जानवर, आसमान को बरसों बाद सांस लेता देख रहे थे, एक सवाल सबकी आँखों में नज़र आ रहा था, कुदरत में इंसान की जगह क्या है? अगर उसके बिना सब बेहतर है, तोह उसके जीने की वजह क्या है?