एक बड़ी गाड़ी एक घर, बैंक में बैलेंस और फॉरेन का सफर, मसरूफ ज़िंदगियाँ जीए बिना गुजर जाती हैं, एक टीस बनके यादों में सिमट जाती हैं, मैं भी इसी सफ़र का एक मुसाफिर होता, बड़ी दीवाली के इंतज़ार में दीयों को संजोता, तूने छुआ, तो मैं दुनियां में रह कर भी दुनियां का न रहा, जो सबसे था छिपा, वह राज़ जब मेरी आँखों में तूने पढ़ा, ज़िन्दगी की मसरूफियत तेरी मुस्कान बनके रह गयी मेरी हर सांस दीवाली का त्यौहार बनके रह गयी, अब ख्वाब भी अपने हैं, और मंज़िल भी अपनी है, हर शाम भी अपनी है, हर सांस भी अपनी है, तू दूर है तो तेरी याद अपनी है, जब पास है तेरी हर बात अपनी है, ज़िन्दगी आकर ऐसे गले से लगी, हर पल सीने में बड़ी ज़ोर से धड़कता है, सफ़र वही है, कदमों की चाल बदल गयी है, ज़िन्दगी गुजारती है, या तेरे साथ संवारती है, ओए जानेमन तू ही ज़िंदगी है, तू ही ज़िंदगी है.