आज़ादी की कीमत दायरों में होती है, बिना दायरों के आज़ादी बस एक शोर होती है. हर शख्स आज़ादी में अधिकार माँगता है, पर मुक्कमल आज़ादी तो ज़िम्मेदारियों में छुपी होती है.
दायरों में रफ़्तार हो, मुल्क के लिए प्यार हो, अपने हिस्से की सफाई हो, टैक्स की भरपाई हो, बिना निगरानी के कानून माने हम, हर देशवासी के सम्मान को पहचाने हम.
हम मुल्क से उम्मीद रखें, पर मुल्क की उमीदें हमसे भी जुडी होती हैं, क्यूंकि मुक्कमल आज़ादी तो ज़िम्मेदारियों में छुपी होती है.
लाल किले पर फहराता तिरंगा अपनी आज़ादी की पहचान है, बेगाने दायरों को तोड़कर खुद के दायरे लिखने की दास्ताँ है, ज़मीन का टुकड़ा नहीं एक एहसास होता है मुल्क, साँसों में इस एहसास को महसूस करना ही आज़ादी का सम्मान है.
हर लड़की बेख़ौफ़ हो, विचारों पर ना कोई रोक हो, एक मजहब देश हो, हम भिन्नता में एक हों, एक दूसरे का बल बनें, हक़ के लिए निडर बनें, सच लिखें और सच कहें, देशहित आगे रखें.
वह डोर ही आज़ादी है, जिसे बांधकर एक पतंग आसमान में उड़ी होती है, क्यूंकि मुक्कमल आज़ादी तो ज़िम्मेदारियों में छुपी होती है.